शनिवार, 11 अगस्त 2012

सुरक्षा नारी की

सुरक्षा नारी की

इंसान नहीं कोई वस्तु है वो
किसी भी सामान से बहुत सस्ती है वो
कैसे भी किसी ने भी उसका उपयोग किया
जिसने चाहा जब चाहा उसको बेइज्जत किया
बेइज्जत होकर भी अपना ही चेहरा छुपाती है वो      
अपनों से भी सहानुभूति की जगह दुत्कारी जाती है वो
कोई और अपराध में अपराधी अपना मुंह छुपाता है
ये ऐसा अपराध है इसमें सहनेवाला ही अपना सिर झुकाता है
आज नई सदी में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है
उसकी इज्जत की कोई कीमत नहीं हैं
छोटी बच्ची हो या बूढी औरत सबको हवश के 
शिकार बना रहे हैं 
पुरुष इंसान नहीं वासना के पुजारी बन हैवान हो रहे हैं  
जिस देश में बच्चियों और औरत को देवी का दर्जा दिया जाता है   
उसी देश में उनके साथ इतना घ्रणित कर्म किया जाता है 
उनके कपडे ,पहनावे ,रहन -सहन को दोष दे रहे हैं 
अपनी गन्दी मानसिक सोच को नहीं बदल रहे हैं    
कोई सरकार कोई कानून इस जुर्म को नहीं रोक पा रहा है 
दिन -प्रतिदिन ये घ्रणित जुर्म बढ़ता जा रहा है 
हम औरतों को ही एकजूट होकर इसके खिलाफ लड़ना होगा 
और अपने को इस शारीरिक और  मानसिक यंत्रणा से बचाना होगा 
कुछ आदमी अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठा रहे हैं  
औरतें भी इंसान हैं ये समझ नहीं पा रहे हैं 
जिस दिन औरत ने सच मे दुर्गा माँ का रूप रखा 
एक भी राक्षस इस धरती पर नहीं बच पायेगा 
पापियों अपने पापों को इतना मत बढाओ 
उसके सोये हुए कोप को मत जगाओ 
नहीं तो इस दुनिया का हो जाएगा नाश 

हर तरफ होगा सिर्फ विनाश ही विनाश 







 



   

13 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

marmsparshi prastuti..प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...कुछ आदमियों के वहशीपन का मुकाबला हम सभी को मिलकर करना होगा..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

प्रेरणा देती हुई सशक्त रचना....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सशक्त और सार्थक रचना..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मार्मिक पर प्रभावी प्रस्तुति..

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|

udaya veer singh ने कहा…

प्रभावशाली रचना ...शुभकामनाएं जी /

virendra sharma ने कहा…


अब तो स्वर दो इस आक्रोश और वेदना को ...प्रासंगिक प्रस्तुति जोश और आक्रोश पैदा करती है एक धरातल तलाशती रचना खुले घूमते आवारा पशुवत स्वानों को अब बांधों पट्टे,ram ram bhai
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आक्रोश होना ही है
जब इंसान जानवर
जैसा अगर हो जाये
अपनी ही नस्ल को
नोचना शुरु हो जाये
दूसरे इंसान देखते रहें
उसके वीभ्त्स रूप को
इस तरक एक लड़की
का जीना दूभर हो जाये !

रविकर ने कहा…

बहुत बढ़िया -
दुष्टों को लेकिन सजा मिलेगी कब ?
बहुत दिनों से यह प्रश्न अनुत्तरित है-

कुछ सलाह और आक्रोश है इन पंक्तियों में-
(1)
चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच |

हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |

कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||
(2)
नई रीति से प्रीति गीतिका, दादी अम्मा गौर कीजिये |
संसर्गों की होती आदी, याद पुराना दौर कीजिये |

आँखों को पढना न जाने, पढ़ी लिखी अब की महिलाएं -
वर्षों मौन यौन शोषण हो, किन्तु भरोसा और कीजिये |।

कांडा कांदा परत दर परत, छील-छाल कर रहा चाबता-
देह-यष्टि पर गिद्ध-दृष्टि है, हाथ मांसल कौर दीजिये |।

अधमी उधमी चामचोर को, देंह सौंपते नहीं विचारा-
दो पैसे घर वाले पाते, जालिम को सिरमौर कीजिये ।।

मीठी मीठी बातें करके, मात-पिता भाई बहलाए -
अनदेखी करते अभिभावक, क्यूँकर घर में ठौर दीजिये ??

व्यवसायिक सम्बंधो में कब, कोमल भाव जगह पा जाते -
स्वामी स्वामी बना सकामा, क्यूँ मस्तक पर खौर दीजिये ??

bkaskar bhumi ने कहा…

प्रेरणा जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'प्रेरणा की कल्पनाएं से' कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 18 अगस्त को 'सुरक्षा नारी की' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

prerna argal ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद नीतिजी जो आपने मुझे इस लायक समझा की मेरे द्वारा लिखी रचना को अपने इ-पेपर में जगह दी [ इसके लिए में आपकी बहुत आभारी हूँ [आपसे एक गुजारिश है की मेरी एक सच्ची रचना "अनोखी बेटी "को भी पदिये और अगर इस लायक समझें की उसे भास्कर भूमि में जगह दे सकें तो में आपकी आभारी रहूंगी /आभार /