समाज का डर
समाज का डर हम पर,कुछ इस तरह छाया है
की कुरीतियों का फैला अंधियारा हमारे जीवन मैं हर तरफ नजर आया है
शादियों मैं हम कर्जा लेकर शान-शोकत और दिखावे
में खूब खर्च करते हैं
फिर जिंदगी भर उसका कर्ज चुकातें हैं
समाज के डर से
जब ससुराल से रोती-बिलखती बेटी शरीर में जख्मों
का निशान लिए वापस ना जाने की फरियाद करती हुई
माता-पिता के पास आती है ,पर वो उसे समझाकर वापस
ससुराल भेज देतें हैं
समाज के डर से
कुछ दिनों बाद उसी बेटी की हत्या या आत्महत्या का
समाचार सुन खूब हो -हल्ला मचाते हैं
कोर्ट -कचहेरी करतें हैं,पर आई बेटी को नहीं अपनातें हैं
समाज के डर से
बाल -विवाह का अंजाम और कानूनी अपराध को
जानते हुए भी आज भी कई छैत्रों में
बाल -विवाह हो रहें हैं पर इस कुरीति को हम छोड नहीं पा रहे हैं
समाज के डर से
बिना जांच -पड़ताल किये विदेश के मोह में विदेश में बसे
लडके से अपनी लड़की की शादी करके धोखा खातें हैं
फिर समाज से छुपाने के लिए झूठे बहाने बनाते हैं
समाज के डर से
बेटी पैदा होने से नाक नीची होती है,.बेटा तो वंश चलाता है
इस कुरीति से बेटियों की गर्भ में ही ह्त्या कर देते है
दहेज़ जैसी कुरीति के कारण भी बेटी को जन्म नहीं देना चाहते हैं
समाज के डर से
धर्म के नाम पर कब तक ढोंगी-पाखंडी बाबाओं को
दान-पुण्य के नाम पर धन लूटातें रहेंगे
इनकी बातों में आते रहेंगे और अपने को छलते रहेंगे
समाज के डर से
ऐसी कितनी कुरीतियों को हम निभाते रहेंगे
और इंसानों की जिंदगियों से खेलते रहेंगे
समाज से कभी इन कुरीतियों ख़त्म नहीं कर पायेंगे
समाज के डर से
समाज हमसे है हम समाज से नहीं
बुराइयों को छोडकर अच्छाइयों को अपनाओं
शिक्षित समाज में नई रीतियों को बनाओ
पुराने समाज की पुरानी कुरीतियों को भूल जाओ
समाज के डर से
42 टिप्पणियां:
वाह ..प्रेरणा ...!!
बहुत सुंदर भाव से रचना रची है ...!!
प्रेरणा की कल्पनाएँ ..
अब और ..और ...उड़ाती जाएँ ...!!
सार्थक सन्देश देती हुई अच्छी रचना
शादियों मैं हम कर्जा लेकर शान-शोकत और दिखावे
में खूब खर्च करते हैं
फिर जिंदगी भर उसका कर्ज चुकातें हैं... फिर भी सही कदम नहीं लेते
वास्तव में समाज के डर से हम वो सब करते हैं जो समाज के लिए ही सही नहीं है
समाज का डर ... सच को उजागर करती सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।
सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! २१ वी सदी में होकर भी हमारे देश के लोगों की सोच में कोई तबदीली नहीं आयी जिसे देखकर बहुत दुःख होता है! आज के ज़माने में जहाँ लड़कियाँ एक कदम आगे हैं लड़कों से और ऐसा कोई काम नहीं जो लड़कियाँ न कर सके फिर भी सब लड़के के लिए तरसते हैं!
दान-पुण्य के नाम पर धन लूटातें रहेंगे
इनकी बातों में आते रहेंगे और अपने को छलते रहेंगे .
पूरी रचना में बेहतर संदेश है। बहुत सुंदर
samaj ka dar aise hi khatarnak kamon ko bhi anjam deta hai.
प्रेरणा जी , बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं आपने । समाज के डर से स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। माँ बाप को सबसे पहले , पहल करनी होगी , अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए। साथ ही स्त्रियों को भी चाहिए की वो निर्भीक एवं आत्मनिर्भर बनें । विपरीत परिस्थितियों में सही निर्णय लें और स्वयं को जीवन जीने की वजह दें।
Fear of society is the biggest impediment in India's success. It stops people from trying accepting new things.
Nice post !!
सार्थक लेख
समाज में फैली कुरूतियों पर करारा प्रहार ।
Bahut khoob Prerna ji...Sarthak sandeshabhivyakti...behad sateek aaj ke mahaul mein...
Badhayee..
समाज के डर से baahhuuuuuuuu sndarhai
आपने बहुत अच्छा लिखा है.मैं तो कह रहा हूँ की अगर आप बेहतर क़दम उठा रहे हैं तो निडर हो कर उठायें,तभी तो समाज में बदलाव आयेगा.समाज से इतना भी क्या डरना ?
एकदम सटीक और सार्थक रचना.
प्रेरक रचना।
---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
बिलकुल सटीक बात कही है आपने.
सादर
गम्भीर सत्य
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सार्थक सन्देश..
वाह प्रेणना जी ! वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...बेजोड़..
आपने अपनी कविता के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों पर करार प्रहार किया है आप का कहना बिलकुल सही है | बहुत सी बातें ऐसी हैं की जिन्हें हम जानते हैं की यह गलत है किन्तु फिर भी समाज के डर से उसे करने को मजबूर होते हैं | इतनी तीखी और सत्य बेबाक उदघोष के लिए आप बधाई के पात्र हैं |
चलिए ये जान कर ख़ुशी हुई की मेरे जैसे और भी दीवाने हैं इस दुनिया में जो सत्य को खुले रूप से कह सकने का ताकत रखते हैं | कृपया यही हौसला आगे के पोस्ट में भी बनाए रखिये |
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं
वाह प्रेणना जी ! वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...बेजोड़..
आपने अपनी कविता के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों पर करार प्रहार किया है आप का कहना बिलकुल सही है | बहुत सी बातें ऐसी हैं की जिन्हें हम जानते हैं की यह गलत है किन्तु फिर भी समाज के डर से उसे करने को मजबूर होते हैं | इतनी तीखी और सत्य बेबाक उदघोष के लिए आप बधाई के पात्र हैं |
चलिए ये जान कर ख़ुशी हुई की मेरे जैसे और भी दीवाने हैं इस दुनिया में जो सत्य को खुले रूप से कह सकने का ताकत रखते हैं | कृपया यही हौसला आगे के पोस्ट में भी बनाए रखिये |
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं
एक सार्थक भाव को आपने स्पष्टता से रखने की सफल कोशिश की है. सुन्दर प्रस्तुति प्रेरणा जी. अचानक इन पंक्तियों की याद आई-
टी वी पर एक तरफ दिखलाया जाता है महिलाओं का शोषण
तो दूसरी ओर दिखलाया जाता है महिला मुक्ति आन्दोलन
महिला मुक्ति आंदोलन का समाज पर इतना प्रभाव है
की जन्म से पहले ही "मुक्ति" का प्रस्ताव है
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
क्यूँ डरते हैं हम समाज से? शायद आत्मविश्वास कि कमी और अलग-थलग पद जाने का डर । कुरीतियों का विरोध जरूरी है। बहुत सुंदर और यथार्थवादी , विचारोत्तेजक रचना। धन्यवाद ।
bahut acche vichaar hain aapke....
सच्चाइओ ...से रूबरू कराती हुई ...मेरे ब्लॉग पे भी पधारे आपका इंतज़ार है ...//
समाज में फैली कुरूतियों पर करारा प्रहार, सार्थक सन्देश देती हुई रचना......
सार्थक सन्देश देती हुई अच्छी रचना
बहुत ही सार्थक पोस्ट और प्रेरणा दाई भी आभार
अच्छी बातो की क़द्र होनी चाहिए !
."समाज के दर से "अच्छी प्रस्तुति .और अमूर्त समाज मूर्त व्यक्ति पर किस तरह और क्यों बरपा है मैं आज तक समझ नहीं पाया ,क्योंकि ये समाज कब किसके काम आया.
कड़वा सच लिखा है, बधाई.
Sacchi aur sarthak rachna..Dhanyabaad..
समाज में व्याप्त कुरीतियों पर करारी चोट है आपकी पोस्ट , कुछ तो समझेंगे हम , बधाई
sarthak sandesh deti hui kavita . pahali baar yahan tak pahunchi hoon, bahut achchha laga.
सन्देश देती हुई बहुत बढ़िया रचना!
सबसे बडा रोग
क्या कहेंगे लोग
sarthak aur sandesh deti sochne pr mazbur karti kavita badhai
rachana
बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं आपने ।
सच को उजागर करती सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
प्रेरणा अर्गल जी साधुवाद -बहुत ही प्यारी रचना समाज के डर से हम किस कदर भ्रमित हैं बोझिल हैं दर्द झेल रहे हैं सब क्षेत्रों को आप ने इस में समाहित किया एक बहुत ही शिक्षा प्रद रचना अंत में सुन्दर आवाहन -काश लोग इस पथ पर चल पड़ें -बधाई हो
समाज हमसे है हम समाज से नहीं
बुराइयों को छोडकर अच्छाइयों को अपनाओं
शिक्षित समाज में नई रीतियों को बनाओ
पुराने समाज की पुरानी कुरीतियों को भूल जाओ
शुक्ल भ्रमर ५
दर्द यह है की ,सदियों से प्रवचन ,प्रेरणा ,उपदेस सुनते ,सुनाते रहे हैं , हमारी प्रतिवद्धता कितनी रही हैं ,सरोकार कितना रहा है , यह लक्षित नहीं कर पाए हैं .कहाँ कमी रह गयी ,खोजना होगा ........ अच्छा विश्लेषण .....साधुवाद जी /
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