मंगलवार, 13 सितंबर 2011

अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए

आज हिंदी दिवस के शुभअवसर पर हमारे ब्लोगर साथियों को बहुत शुभकामनाएं 

अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए  


आज हमारे देश में हर तरफ अंग्रेजी का बोलबाला है /हर शिक्षित इंसान अंग्रेजी में बात करता हुआ ही नजर आता है /बल्कि ये कहा जाए की अंग्रेजी में बोलना स्वाभिमान या (स्टेटस सिम्बल) हो  गया है तो अतिशोक्ति नहीं होगी /अगर आपको अंग्रेजी में बात करना नहीं आता तो आपको हिकारत की नजरों से देखा जाता है /तुच्छ समझा जाता है भले आप कितने ही पढ़े लिखे क्यों नहीं हो /कितने ही ज्ञानी क्यों नहीं हो /अंग्रेजी बोलना नहीं आया तो आपका सब ज्ञान बेकार हो जाता है /हिन्दुस्तान में रहकर आराम और बढे शान से इन्सान बोलता है की मुझे हिंदी बोलना नहीं आता  या मुझे हिंदी बोलने में  दिक्कत होती है /सोचिये कितने शर्म की बात है की हम अपनी मात् भाषा को बोलने में और पढने में शर्माते हैं और अंग्रेजी बोलनें में गर्व महसूस करते हैं /आज कल स्कूलों  में हिंदी की गिनती नहीं  सिखाई जाती बच्चों को अगर हिंदी में संख्या बोल दो तो बच्चे पूछने लगतें हैं छत्तीस याने क्या तब उनको बोलो बेटा छत्तीस माने थर्टी  -सिक्स /ये हाल है हमारे देश का /
जबकि विदेशों में ऐसा नहीं होता वहां के लोग अपनी देश की भाषा बोलनें में   गर्व महसूस करतें हैं /मैंने तो कई देशों के प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति को देखा है की वो अपनी भाषा में ही बात करना या भाषण देना पसंद करते हैं /चाहे उन्हें दोभाषिया की भी सहायता क्यों  ना लेना पढ़े / उन्हें तो अपनी भाषा में बोलने में कोई शर्म नहीं आती / 
हम लोग अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्त हो गए परन्तु अंग्रेजी के गुलाम हो गए /मैं ये नहीं कह रही की दूसरी भाषा में बोलना या सीखना बुरी  बात  है  परन्तु दूसरी भाषा के सामने अपनी राष्ट्र भाषा  को तुच्छ समझना उसको बोलने में शर्म महसूस करना या कोई बोल रहा है उसको हिकारत की नजर से देखना ये तो अच्छी बात नहीं हैं /आज अगर आपको ऊँची सोसाइटी में आना जाना है तो अंग्रेजी बोलना जरुर आना चाहिए नहीं तो आप उनकी नजरों में गंवार नजर आयेंगे वो आपको निम्न समझेंगे /हमारे दक्षिण प्रदेशों के तो और भी बुरे हाल हैं वहां अंग्रेजी के कुछ शब्द तो फिर भी लोग समझ लेते हैं परन्तु हिंदी का कोई भी  शब्द नहीं समझते/बल्कि हिंदी    
बोलने वालों के साथ उनका ब्यवहार ही अलग होता है / अपने प्रदेशों की भाषा बोलना तो ठीक है परन्तु अपनी राष्ट्र भाषा का ज्ञान भी हर हिन्दुस्तानी को होना जरुरी है /
आज हिंदी दिवस पर हम सबको हिंदी भाषा के प्रचार और प्रसार को बढ़ाने के लिए उपयुक्त कदम उठाना चाहिए /और अपने जाननेवालों को हिंदी में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए /बच्चों को भी हिंदी भाषा का ज्ञान देना बहुत जरुरी है /सारे देश के स्कूलों में हिंदी विषय का ज्ञान जरुर  देना  चाहिए /
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और उसका हमें दिल से सम्मान करना चाहिए /उसको बोलनें में शर्म नहीं गर्व महसूस  करना चाहिए / 
   
सारे  जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा 
हिंदी हैं हम वतन हैं 
हिन्दुस्तां हमारा     

32 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अंग्रेज़ी को महत्त्व देने की प्रवृति हमारी है और हम इसकी दासता से आज भी मुक्त नहीं हो पाए हैं ..बल्कि आज तो अंग्रेज़ी बोलने समझने वाले की ज्यादा शान है ..

सार्थक चिंतन ...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह! सटीक और सार्थक

Bharat Bhushan ने कहा…

हिंदी की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया है आपने. मैं हिंदी की खराब स्थिति को लिए उन 'अंग्रेज़ों' को दोषी मानता हूँ जो देश में ही रह गए थे. तथापि हिंदी के भविष्य के लिए आशावान हूँ. आगे चल कर हिंदी ब्लॉगर्स की भूमिका भी सकारात्मक तरीके से हिंदी साहित्य को प्रभावित करेगी. अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

इसी तरह हिंदी सेवा करते रहें.
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आदरणीया संगीता जी और भूषण जी के विचारों से सहमत।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

सादर

Kunwar Kusumesh ने कहा…

हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सार्थक चिंतन।

हिन्‍दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
------
जै हिन्‍दी, जै ब्‍लॉगिंग।

घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।

Anita ने कहा…

आपको भी हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं ! आपने हिंदी भाषा के प्रचार की आवश्यकता पर तथा हिंदी बोलने में सम्मान महसूस करने के विषय में जो कुछ कहा है, पूर्णतया सही है, हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा ही नहीं हमारी पहचान है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हिंदी हमारी जान है ... शान है और बोलते हुवे ... बात करते हुवे ... नेताओं को बोलते हुवे इसका प्रयोग करना ही चाहिए ..
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ...

Unknown ने कहा…

आज हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए बहुत कुछ करने की जरुरत है और ये जिम्मेदारी हम हिंदी भाषियों को ही उठानी पड़ेगी | हिंदी दिवस की आपको भी शुभकामनायें |
मेरे ब्लॉग में आने के लिए धन्यवाद |

एक बार पुनः आयें और हिंदी पर मेरी एक और रचना देखें-
**मेरी कविता:हिंदी हिंदुस्तान है**

prerna argal ने कहा…

सबसे पहले आप सबको हिंदी दिवस की शुभकामनायें /आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद की आप सबने हमारी रचना पर इतनी अच्छी टिप्पड़ी की और उसको पसंद किया /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद हमारी रचनाओं को मिलता रहेगा /aabhaar/

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हम तो हिंदी प्रेम में इंग्लिश बोलना ही भूल गए । :)
शुभकामनायें ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने...इस पर विचार किया जाना चाहिए...


हिंदी दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें !

दीपक बाबा ने कहा…

जी, जो भी कहिये ..... पर अंग्रेजी आज राजभाषा है.

रविकर ने कहा…

हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||

विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |

सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |

जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |

उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||

हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल --

संजय भास्‍कर ने कहा…

हिंदी दिवस पर
बहुत ही रोचक और विश्लेष्णात्मक पोस्ट
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
*************************
जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

deepti sharma ने कहा…

hindi diwas ki badayi
bahut sahi kaha aapne

vidhya ने कहा…

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा ,
हम बुल बुले है इनके यह गुलस्ता हमारा

जय हिन्द जय हिन्द

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें
चर्चामंच-638, चर्चाकार-दिलबाग विर्क

अभिषेक मिश्र ने कहा…

वाकई हिंदी न बोलना हमारी मानसिक गुलामी ही है.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आपने बहुत अच्छा लिखा है .
जागरूकता आनी चाहिए इस विषय में .

Anupama Tripathi ने कहा…

sarthak chintan ...aur lekhan ...hindi divas ki
shubhkamnayen...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया प्रेरणा जी
सादर वंदे मातरम् !

आपका हिंदी प्रेम स्तुत्य है !
आपकी भावनाएं वंदनीय हैं !
और
आपकी रचना प्रशंसनीय है !

आप कहती हैं -
मैंने तो कई देशों के प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति को देखा है कि वो अपनी भाषा में ही बात करना या भाषण देना पसंद करते हैं /
चाहे उन्हें दोभाषियों की भी सहायता क्यों न लेना पड़े /
उन्हें तो अपनी भाषा में बोलने में कोई शर्म नहीं आती /

उन्हें शर्म नहीं आती , लेकिन
हमें शर्म आती है अपने हिंदुस्तान के राष्ट्र प्रमुखों को अंग्रेजी में भाषण देते देख-सुन कर …

…और यह शर्म घोर निराशा और हास्यास्पद विस्मय में बदल जाती है , जब हमारे प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति के अंग्रेजी भाषण को अपनी रूस , जापान , चीन , हंगरी , अरब आदि देशों की यात्रा के दौरान रूसी , जापानी , चीनी , हंगेरियन , अरबी आदि भाषाओं में दुभाषियों द्वारा हाथोंहाथ अनुवाद करके वहां के आम नागरिक के लिए प्रस्तुत किया जाता है …


राष्ट्र , राष्ट्रभाषा , और राष्ट्रगीत , राष्ट्र ध्वज , तथा राष्ट्र प्रतीकों के प्रति सम्मान और गर्व करने की प्रेरणा हमें स्वतः ही लेना सीखना है !

नेट पर सचित्र बीसों उदाहरण मिल जाएंगे कि
# "जन गण मन " की प्रस्तुति के दौरान नामधारी नेता पड़े पड़े नींद ले रहे हैं ,
# तिरंगा इन कृतघ्न नेताओं के पांवों के नीचे पड़ा है

बहुत आहत करने वाला प्रसंग है … जिससे जुड़ी अनेक विडंबनाएं आप-हम जैसे राष्ट्रभक्तों को व्यथित करने वाली हैं … … …

prerna argal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
prerna argal ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आप सबका की आपने मेरे लेख को पसंद किया और इतने अच्छे सन्देश देकर मेरा उत्साह बढ़ाया /आशा है आगे भी आप सबका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /

Rohit Singh ने कहा…

अपन तो धड़ल्ले से हिंदी बोलते हैं। अंग्रेजी की महफिल भी हमारे सामने हिंदी बोलने को मजबूर हो जाती है। अंग्रेजी उवाच वाले उल्लुओं को हंसाता देख ठहाका लगाने पर मजबूर हो जाता हूं..मजा तो तब आता है जब कोई अंग्रेज मेरे से हिंदी में बतियाने की कोशिश करता है और अपने काले अंग्रेज मुंह बाए देखते रहते हैं। अपन को कोई शर्म नहीं कि अंग्रेजी बेहतर नहीं आती। हां भाषा से कोई समस्या नहीं है ओर जो अंग्रेजी जानते हैं बेहतर है। पर घऱ में भी अंग्रेजी का प्रयोग अनावश्यक करते देख कौआ हंस की चाल चलता देख जबरदस्त हंसी आती है।

G.N.SHAW ने कहा…

शर्म आणि चाहिए देशी अंग्रेजो को !बहुत ही सुन्दर लेख !

Sadhana Vaid ने कहा…

आपकी सभी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ प्रेरणा जी ! जाने कैसी हीन भावना से ग्रस्त हैं हमारे देश के युवा जिन्हें अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस होती है ! ज्ञान वृद्धि के उद्देश्य से कितनी भी भाषाएँ सीख ली जायें बहुत अच्छी बात है लेकिन गर्व हमें अपनी राष्ट्र भाषा को बोलने में ही महसूस करना चाहिये ! एक सार्थक लेख एवं सशक्त अभिव्यक्ति ! बधाई !

Urmi ने कहा…

सही मुद्दे को लेकर बेहतरीन प्रस्तुती ! विचारणीय पोस्ट !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Satish Saxena ने कहा…

समय अवश्य बदलेगा .....
शुभकामनायें आपको !

saket maurya ने कहा…

हमें शर्म महशुस होता है की हमारे देश के प्रधानमंत्री को हिंदी बोलने आता लेकिन हिंदी बोलने में शर्म महशुस करते हैं......
क्यों की वो काले अंग्रेजों की सर्कार है.