इंसानियत
कहाँ से और कैसे आया था यह तो भगवान ही जानता था
पांच-छे साल का एक बच्चा चार-पांच दिन से सिग्नल पर नज़र आया था
चिलचिलाती धूप में नंगे पैर निक्कर और बनियान पहने सिगनल पर खड़ी होती
गाड़ी को दौड़कर अपनी शर्ट से साफ़ करता और उसके बाद पैसे लेने के लिए हाथ बढ़ाता
कुछ नरम दिल इंसान पैसे दे देते, कुछ गुस्से से झिड़क देते
कुछ बिना कुछ दिए गाड़ी आगे बड़ा देते
वो कुछ देर गाड़ी से उडती हुई धूल को मायूसी से देखता
फिर अगला सिगनल होने पर गाड़ियाँ साफ़ करने दौड़ पड़ता
जब कुछ पैसे इकट्टे हो जाते तो फुटपाथ पे खड़े खाने के ठेले के पास खड़ा हो जाता
ठेले वाला भी खाना मांगने पर उसको झिड़क देता
पहले तो अपने और ग्राहकों को निपटाता
भूखा बच्चा जब तक खाने को भूखी नज़रों से देखता
सब से आखिर में उस बच्चे से पूछता
पहले वो बच्चे से गिनकर पैसे ले लेता
फिर भी उसे बासी बचा-खुचा खाना पकड़ा देता
भूखा बच्चा वहीँ नीचे बैठकर अपना पेट भरता
वही कोने के नल से पानी पी लेता
और चुप चाप पास ही पेड़ की छाया में लेट जाता
एक रात पता नहीं उस बच्चे ने क्या खाया
उसके पेट में जोर से दर्द उठ आया
वो रोया-चिल्लाया पर किसी को तरस नहीं आया
राहगीर दो मिनिट रुकता,ठिठकता फिर मुसीबत के
डर से अपनी मंजिल पर बढ जाता
रात में तड़प-तड़प कर वो बच्चा इस दुनिया को अलविदा कर गया
सुबह जब कौओ के झुण्ड और शोर से
इंसानों की नज़र पड़ी
तो उनकी भीड़ भी उसके आस-पास बढ़ी
एक इंसान ने मेहरबानी की, पुलिस को फ़ोन द्वारा इत्तिला कर दी
नगर निगम की लावारिश लाश उठाने वाली गाड़ी आई
और उस बच्चे की लाश को उठा कर ले गयी
सिगनल पर भागते दौड़ते उस बच्चे की
तो कहानी यहीं समाप्त हो गयी
दुनिया तो इस ही तरह चलती रही
पर इंसानियत फिर इस दुनिया को रुसवा कर गयी