धूप अधिक ,छावं कम है जिंदगी
जिम्मदारियों को मंजिलों तक
पहुंचाने की चाह है जिंदगी
रात -दिन मेहनत करके ,आधी से ज्यादा
धूप में निकल जाती है जिंदगी
इसी आशा में की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर
ठंडी-ठंडी छावं में गुजर जायेगी जिंदगी
पर जब जिम्मेदारियां मंजिल पाकर मुक्त होकर
हवा हो जातीं हैं
तो दुःख से ठंडी-ठंडी छावं की आशा लिए
दुनिया से विलुप्त हो जाती है जिंदगी
7 टिप्पणियां:
"पर जब जिम्मेदारियां मंजिल पाकर मुक्त होकर
हवा हो जातीं हैं
तो दुःख से ठंडी-ठंडी छावं की आशा लिए
दुनिया से विलुप्त हो जाती है जिंदगी"
बिलकुल सच बात कही आपने.
सादर
zimmedariyon se bhari zindagi ka khoobsoorat chitran ....!!
Keep writing ..
पर जब जिम्मेदारियां मंजिल पाकर मुक्त होकर
हवा हो जातीं हैं
तो दुःख से ठंडी-ठंडी छावं की आशा लिए
दुनिया से विलुप्त हो जाती है जिंदगी
sunder rachna..
यही ज़िंदगी है धूप छाँव सी
nice .....
रात -दिन मेहनत करके ,आधी से ज्यादा
धूप में निकल जाती है जिंदगी
बहुत बढ़िया....
जिंदगी के विभिन्न आयामों को समझने का अच्छा प्रयास.. सुंदर है /
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