नजर आता है
दर्पण में खराबी है या मेरी नज़रों में
समझ नहीं आता है
बार-बार दर्पण को साफ़ कराती हूँ
अपना चेहरा भी पानी से धोती हूँ
पर जब भी दर्पण में देखूँ
अपने अक्श को धुंधला ही पाऊँ
एक दिन एक बच्चे को उसी दर्पण
के सामने खड़ा पाया
तो उसका अक्श दर्पण में
साफ़ नजर आया
ना तो ये नज़रों की खराबी है
ना दर्पण की
ये खराबी तो है हमारे
अंतर्मन की
इतने सालों में जो छल,कपट ,अहम् जैसी बुराइयां
हमारे अंतर्मन में छाती जाती हैं
वह अब हमारे अंतर्मन के साथ -साथ
हमारे अस्तित्व में भी नजर आती हैं
दर्पण तो बिलकुल स्वच्छ है
हमारा अस्तित्व ही धुंधला गया है
हम अपना अंतर्मन स्वच्छ कर लें
तो हमारा अस्तित्व भी साफ़ नजर आयेगा
फिर कभी वो धुंधला नजर नहीं आयेगा
वह अब हमारे अंतर्मन के साथ -साथ
हमारे अस्तित्व में भी नजर आती हैं
दर्पण तो बिलकुल स्वच्छ है
हमारा अस्तित्व ही धुंधला गया है
हम अपना अंतर्मन स्वच्छ कर लें
तो हमारा अस्तित्व भी साफ़ नजर आयेगा
फिर कभी वो धुंधला नजर नहीं आयेगा
10 टिप्पणियां:
अपने अस्तित्व की खोज में निकला है मन ...
.खोज ही लेगा स्वच्छ साफ़ दर्पण ....!!
नित नए कर के जतन ...!!
सुंदर अभिव्यक्ति है ...प्रेरणा ...इस कलम को अब निरंतर चलने दो ....
भाव मन के बहाने दो ...
आगे लेखन के लिए शुभकामनायें ..!!
सुंदर प्रेरणा
.. शुभकामनायें ..!!
bahut sunder rachna ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
बहुत ही बढि़या ...
बेहतरीन।
सादर
बहुत सुन्दर रचना...
सादर...
"दिल अपना आईना कर लें,
कि सांप शीशे पे चल नहीं सकता"
सही कहा आपने अंतर्मन को स्वच्छ करना बहुत आवश्यक है
जैसा मन होगा वैसा ही अक्स नज़र आएगा. सच कहा आपने. सुंदर अभिव्यक्ति.
दर्पण तो बिलकुल स्वच्छ है
हमारा अस्तित्व ही धुंधला गया है
हम अपना अंतर्मन स्वच्छ कर लें
कश ऐसा कर पाते ..सुन्दर अभिव्यक्ति
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