दुनिया की रीत
दुनिया की रीत ही निराली है
किसी को फूलों का हार ,किसी को देती गाली है
अमीरों को झूक कर सलाम करती है
भूंखे गरीब बच्चे की तरबूज चोरी पर जान ले लेती है
स्वार्थी ,मतलब से परिपूर्ण दुनिया हो रही है
दुःख-दर्द ,भावनाओं से विहीन,पैसों की गुलाम हो रही है
गरीबों की कहीं नहीं सुनवाई ,अमीरों की बेवजह वाहवाही
गरीब जब सब तरफ से परेशान हो जातें हैं
तो विद्रोह पर उतर आते हैं
के लिए मजबूर हो जातें हैं
धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदार ,देश के नाम पर देश के कर्णधार
जब जनता और देश को लूट सकतें हैं
तो चोरी,डकेती करने पर सिर्फ गरीबों ही को क्यों
सजा देते हैं
यह दोहरी रीति समझ नहीं आती
इंसानों में यह भेद की निराली नीति क्यों है निभाई जाती
गरीबों के जीवन में होतीं खुशियाँ कम हैं
जमाने द्वारा दिए उनको बहुत से गम हैं
पैसे को भगवान् मत बनाओ ,इंसानियत को अपनाओ
मतलब,अहम् ,स्वार्थ को भूलकर ,इंसान को गले लगाओ
अमीरी,गरीबी किस्मत की बात है ,उसको देखने की एक ही नजर लाओ
सबके लिए एक ही नियम कानून हो ,हेंसियत के अनुसार अलग-२ कानून मत बनाओ
गरीब है तो वो भी इंसान है
भूंख उसे भी लगती है, दर्द उसे भी होता है
उसकी मजबूरी और लाचारी का फयदा मत उठाओ
उसकी भी इज्जत है .उसको दुत्कार कर अपने को
उसकी नजरों में छोटा मत बनाओ
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं
उसके कर्मों से अपनाओ
सारे भेदभाव को मिटाकर
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ
गरीब है तो वो भी इंसान है
भूंख उसे भी लगती है, दर्द उसे भी होता है
उसकी मजबूरी और लाचारी का फयदा मत उठाओ
उसकी भी इज्जत है .उसको दुत्कार कर अपने को
उसकी नजरों में छोटा मत बनाओ
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं
उसके कर्मों से अपनाओ
सारे भेदभाव को मिटाकर
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ
15 टिप्पणियां:
"दुनिया की रीत ही निराली है
किसी को फूलों का हार ,
किसी को देती गाली है "
सही कहा आपने. दुनिया की रीत ही यही है.आज हम अपने दुःख से दुखी कम पर दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी है.
अंतिम पैरा में आपने बहुत सार्थक आह्वान किया है .
सादर
सुन्दर कामना के साथ लिखी गई शानदार रचना!
सही कहा है आपने।
"दुनिया की रीत ही निराली है
किसी को फूलों का हार ,
किसी को देती गाली है "
सही कहा आपने. दुनिया की रीत ही यही है.आज हम अपने दुःख से दुखी कम पर दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी है.
अंतिम पैरा में आपने बहुत सार्थक आह्वान किया है .
सादर
बिल्कुल सही और सार्थक कहा आपने,
सादर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यही हमारे तथाकथित सभ्य समाज की सच्चाई है ..
आदरणीया प्रेरणा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
दुनिया की रीत के माध्यम से आपने गरीबों की व्यथा को अभिव्यक्ति दी है …
अच्छी रचना है …
अमीरी,गरीबी किस्मत की बात है ,
उसको देखने की एक ही नजर लाओ
सबके लिए एक ही नियम कानून हो ,
हेंसियत के अनुसार अलग-अलग कानून मत बनाओ
गरीब है तो वो भी इंसान है
सच है…
♥हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत भावुक कर देने वाली सुन्दर रचना। हमारे स्वार्थी समाज में किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं है । दुसरे के दुःख समझ सकें , ये संवेदनशीलता ही नहीं है।
बहुत भावुक कर देने वाली सुन्दर रचना। हमारे स्वार्थी समाज में किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं है । दुसरे के दुःख समझ सकें , ये संवेदनशीलता ही नहीं है।
गरीब है तो वो भी इंसान है
भूंख उसे भी लगती है,
दर्द उसे भी होता है
उसकी मजबूरी और लाचारी का फयदा मत उठाओ
उसकी भी इज्जत है .
आपकी कविता में ग़रीबों के प्रति झलकता दर्द बहुत प्रभावित करता है,प्रेरणा जी.
bahut sunder soch ..
sunder kavita .
ग़रीबों के प्रति झलकता दर्द
बिल्कुल सही और सार्थक कहा आपने,
प्रेरणा अर्गल जी सुन्दर रचना समसामयिक स्थिति को जोड़ते हुए -तरबूज के लिए गरीब बच्चे की हत्या - न जाने हमारे लोगों को क्या हो गया है -ये समाज निरंतर पतन की ओर बढ़ रहा है -
भूंखे गरीब बच्चे की तरबूज चोरी पर जान ले लेती है
स्वार्थी ,मतलब से परिपूर्ण दुनिया हो रही है
बधाई हो -शुक्ल भ्रमर ५
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं
उसके कर्मों से अपनाओ
सारे भेदभाव को मिटाकर
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ
..........
saarthak lekhan...
संवेदना के सच्चे अर्थों में आपकी शुभ चिंता तय मुकाम पर पहुंचती दिख रही है .... आपकी जायज पीड़ा का समर्थन ,कथ्य एवं काव्य ,सम्मान दोनों को .../
एक टिप्पणी भेजें