औरत ही औरत की दुश्मन
हमारे समाज मैं यही कहा जाता है की औरत को समाज में बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता उसके ऊपर अत्याचार किये जातें हैं .पुरुष उनको अपने से नीचा समझतें हैं /उनके साथ बदसलूकी करते हैं /तो मेरी बहनों इस सबकी जिम्मेदार हम खुद हैं /जब घर मैं बेटी पैदा होती है तो सबसे ज्यादा दुखी घर की औरतें चाहे वो सास ,ननदें हो पड़ोसनें हो या खुद माँ ही क्यों ना हो दुखी होकर घर में ऐसा दुःख का माहोल कर देतीं है की घर के पुरुषों को लगता है की कोई बहुत बड़ी मुसीबत आ गई / और उसके बाद जो भी आता है वो बधाई देने नहीं आता सहानुभूति दिखाने आता है खासकर औरतें शुरुवात यहीं से हो जाती है /औरतों द्वारा ही औरत के जनम पर अपनी कोम की बेज्जती करने की / जिस घर मैं बेटा -बेटी दोनों होतें हैं वहां माँ,दादी ही दोनों के बीच में भेद-भाव करतीं हैं बेटा चाहे कितनी ही बदमाशी करे उसको नजर अंदाज करेंगी नहीं तो और बढावा ही देंगी /बेटी को अगर मारे -पीटे या सताए और वो अगर शिकायत करे तो उसको उलटा डांटा या समझाया जाएगा पर बेटे को कुछ नहीं कहा जाएगा /बेटों की इस तरह से परवरिश करना की वो कोई बहुत ऊँची चीज हैं और घर मैं माँ ,बहने उनकी गुलाम हैं ,तो ये संस्कार उन्हें हम औरतें ही देतीं है/ शुरुआत यहीं से होती है औरतें यह भूल जातीं है की आज जो उनका बेटा है वो कल बड़े होकर पुरुष बनेगा अगर आप उसको बचपन से ही औरतें ,लड़कियों की इज्जत करना.उनको प्रताड़ित ना करना ,घर के कामों में बेटी के साथ बेटों को भी मदद करने के संस्कार दें तो लड़कों की सोच में लड़कियों के प्रति सम्मान और बराबरी का समझने की शिक्षा मिलेगी जो सारी जिंदगी उनके साथ रहेगी /क्योंकि बच्चों की सबसे पहली गुरु माँ ही होती है /
घर मैं जब बहु आती है तो सास,ननदें ही उसको सताने में और उसके प्रति अपने बेटे,भाई को भड्कानें,उनके सम्बन्ध ख़राब करने में अहम् रोल निभाती हैं यहाँ तक की लालच के मारे उस बहु को जलाने में भी अपना पूरा सहयोग देतीं है /कोई किस्मत की मारी औरत अगर विधवा हो जाए तो हम औरतें ही उसको कोई ताने देने उसको और दुखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ती .वो अगर थोड़े साज सिंगार के साथ रहना चाहे तो सबसे ज्यादा परेशानी हम औरतों को ही होने लगती है/उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठाकर हम अपने घर के पुरुषों को उसके बारे में बड़ा रस लेकर सुनायेंगे /और अपने कोम की खिल्ली खुद ही उड़ायेंगे /
कोई बलात्कार की शिकार महिला ,लड़की को हम औरतें ऐसी नजरों से देखतें है की इसमें सारी गलती उसी की हो उससे सहानुभूति की जगह हम औरतें ही उससे घिन करते है बात बेबात उसको इतने ताने देतीं हैं की वो ना चाहे तो भी हमारे ब्यवहार से आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए /
कहने की बात ये है मेरी बहनों की आप अपनी सोच बदलिए /अपनी जलन की भावनाओं को कम कीजिये /मेरा घर में अधिकार कम ना हो जाए ,इज्जत कम ना हो जाए वो मुझसे आगे ना निकल जाए ऐसी बहुत सी बातों से अपनी सोच बदलिए एक स्वस्थ सोच अपनाइए /आप अपने घर के प्रत्येक सदस्य को एक दुसरे की इज्जत करना, घर में सबका बराबर अधिकार होना, सबको अपना काम खुद करने का नियम बनाना, किसी पर अत्याचार ना , करने की शिक्षा देंगी /तो धीरे -धीरे सारे जहाँ की सोच बदलेगी /हम औरतों को जिंदगी को जन्म देने की बहुत बड़ी ताकत दी है उपर वाले ने हमें उसका पूरा फायदा उठाकर अपने प्रति इस पूरे समाज की सोच को बदलना है ये तभी हो सकता है जब हम सबमे एकता हो /एक दुसरे के प्रति सम्मान की भावना हो ना की दुश्मनी की /फिर देखिये बेटी पैदा होने पर भी लोग उतना ही खुश होंगे जितना बेटा पैदा होने पर /औरत को अपने आप ही बराबर का दरजा इस समाज में मिल जाएगा / सोच बदलिए समाज में फेली हुई कुरीतियों को मिटाइए
और एक स्वस्थ समाज वाले समाज की रचना कीजिये /
कोई बलात्कार की शिकार महिला ,लड़की को हम औरतें ऐसी नजरों से देखतें है की इसमें सारी गलती उसी की हो उससे सहानुभूति की जगह हम औरतें ही उससे घिन करते है बात बेबात उसको इतने ताने देतीं हैं की वो ना चाहे तो भी हमारे ब्यवहार से आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए /
कहने की बात ये है मेरी बहनों की आप अपनी सोच बदलिए /अपनी जलन की भावनाओं को कम कीजिये /मेरा घर में अधिकार कम ना हो जाए ,इज्जत कम ना हो जाए वो मुझसे आगे ना निकल जाए ऐसी बहुत सी बातों से अपनी सोच बदलिए एक स्वस्थ सोच अपनाइए /आप अपने घर के प्रत्येक सदस्य को एक दुसरे की इज्जत करना, घर में सबका बराबर अधिकार होना, सबको अपना काम खुद करने का नियम बनाना, किसी पर अत्याचार ना , करने की शिक्षा देंगी /तो धीरे -धीरे सारे जहाँ की सोच बदलेगी /हम औरतों को जिंदगी को जन्म देने की बहुत बड़ी ताकत दी है उपर वाले ने हमें उसका पूरा फायदा उठाकर अपने प्रति इस पूरे समाज की सोच को बदलना है ये तभी हो सकता है जब हम सबमे एकता हो /एक दुसरे के प्रति सम्मान की भावना हो ना की दुश्मनी की /फिर देखिये बेटी पैदा होने पर भी लोग उतना ही खुश होंगे जितना बेटा पैदा होने पर /औरत को अपने आप ही बराबर का दरजा इस समाज में मिल जाएगा / सोच बदलिए समाज में फेली हुई कुरीतियों को मिटाइए
और एक स्वस्थ समाज वाले समाज की रचना कीजिये /
44 टिप्पणियां:
बहुत विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है आपने.
सादर
बहुत सार्थक आलेख..
यही तो विडम्बना है!
बढिया आलेख!
isme koi shak nahi aur ise khatm karna bahut mushkil hai
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति है| धन्यवाद
औरत हमेशा ही दूसरी औरत की दुश्मन नहीं है , यूँ तो ईर्ष्या पुरुषों में भी कम नहीं होती ...
लेकिन मैं इस बात से सहमत हूँ की आजकल घरों का माहौल बिगड़ने में पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही जिम्मेदार है और एक स्वस्थ सोच घर को सुन्दर और आरामदायक बना सकती है !
इस मामले में ज्यादातर औरतें सच नहीं कहती है ... पहली बार किसी औरत को सच कहते देख रहा हूँ ... अच्छा लगा ...
खैर इसका मतलब यह नहीं कि आदमियों कि ज़िम्मेदारी कम हो जाती है ...
यह एक स्थापित सत्य है |सुंदर विचारणीय लेख बधाई और नमस्ते |
मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ की जब एक दुसरे को सम्मान देंगे तभी हम सम्मान पा भी सकते हैं और औरत में सच में बहुत ताक़त है और वो अगर चाहे तो इस भूमिका को बखूबी निभा सकती है क्युकी घर का सारा साम्राज्य उसी के हाथ में होता है अगर वो चाहे तो एक सुन्दर समाज बना सकती है उसे सिर्फ अपने अधिकारों का प्रयोग खूबसूरती से करने की देरी है |
सार्थक लेख |
वाकई में पुरुष तो कम दुश्मन हैं औरत ही औरत की दुश्मन ज्यादा है...
सही सचेत किया है । महिलाओं को सोचना पड़ेगा । वे भी कम जिम्मेदार नहीं, समाज में फैले दोहरे मापदंड के लिए ।
विचारणीय लेख बधाई ...
bahut achchha likha hai
sarthak lekh .
-----एक दम सही आकलन किया है...सिर्फ़ यही वज़ह है कि समाज से बुराइयां दूर नहीं होपारहीं हैं....
सवाल पुरुष या स्त्री का नहीं, मानसिकता का है. सामंती समाज ने यह भेदभाव उत्पन्न किये. आधुनिक समाज की जड़ें ज्यों-ज्यों मज़बूत होगी सामंती सोच ज्यों-ज्यों अप्रासंगिक होगी स्त्रियों और पुरुषों के बीच श्रेष्ठता और हीनता की दीवार ढहती जाएगी. लिंग के आधार पर शोषण की प्रवृति पर लगाम लगेगी.
--देवेंद्र गौतम
निसंदेह औरत भी औरत की दुश्मन है। यदि संकट की अवस्था में एक स्त्री उसका साथ दे तो दूसरी स्त्री का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। यदि ससुराल में सास का समर्थन और स्नेह मिले तो बहु एक खुशहाल जीवन जी सकती है। कोई उसे प्रताड़ित नहीं कर सकता।
सार्थक आवाहन ......आभार !
विषय विचारणीय है
लेखन
एक दम सार्थक, सटीक और साहसिक !
अभिवादन .
आपने सुन्दर और सार्थक लेख प्रस्तुत किया है.पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपके विचार सराहनीय हैं.परन्तु आपको सम्बोधन में बहिने ही नहीं भाईयों को भी सम्मिलित करना चाहिये.क्योंकि स्त्री -पुरुष दोनों ही समाज का अंग हैं तथा एक दूसरे से प्रभावित हुए बैगर नहीं रहते.दोनों ही इस समस्या पर ध्यान दें तो ही समुचित हल संभव है
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईये,आपका हार्दिक स्वागत है.
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई |अच्छा लेख |
आशा
bilkul sach likha aapne,
saarthak lekh.
एक उम्दा और सार्थक आलेख...सब को अपने हिस्से का योगदान करना होगा, तब तस्वीर बदलेगी.
सही सार्थक एवं प्रेरक आलेख
sarthak aur viracharsheen lekh
इस मामले में ज्यादातर औरतें सच नहीं कहती है ... पहली बार किसी औरत को सच कहते देख रहा हूँ ... अच्छा लगा ...
खैर इसका मतलब यह नहीं कि आदमियों कि ज़िम्मेदारी कम हो जाती है ...
बहुत विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है आपने.
sab kuchh t v cainalon ne barbad kar diya hai, sab kuchh inhi serial ke kaarn hain
जी बिल्कुल सही। मुझे लगता है कि ऐसी रचनाओं से लोगों को सबक लेना चाहिए। सकारात्मक संदेश देने वाला है ये लेख।
सार्थक लेख ....अच्छी प्रस्तुति
आपका परिचय BLOG WORLD COM पर । BLOG WORLD COM
पर जाने के लिये इसी टिप्पणी के प्रोफ़ायल से जायें ।
धन्यवाद ।
सार्थक लेखन ...विचारणीय
बहुत ही बढ़िया और सुस्पष्ट विचार ! अनुकरण होनी चाहिए !
10000% sach...har aurat ko dutakare jane ka karan aurat hi hoti hai...
विचारात्मक प्रस्तुति के लिये बधाई, बेहतरीन लिखा है .... ।
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
एक ज्वलंत और जीवंत सच्चाई को सामे रखा है आपने ...आपका आभार
पढ़ी लिखी महिलाएं भी जब इस प्रकार की सोच रखती हैं
तो विषय चिंतनीय हो जाता है ....
इस सोच को बदलना जरुरी है ....
सार्थक लेख ......
very interesting post !!
बढिया आलेख!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर, सार्थक और विचारणीय लेख! उम्दा प्रस्तुती!
bahut bahut shukriya aap mere blog par aai apna anmol comment diya.aapka itna behtreen lekh padhne ko mila.bahut saarth hai yeh lekh.humari hi kamiyon ko ingit karta hai.really yahi schchai hai ki aurat hi aurat ki dushman kuon ho jaati hai.vicharniye hai.god bless you.
सार्थक लेखन.
बहुत ही परिपक्व सोच है आपकी.
नयी दिशा दिखाने के लिए आभार.
विचारणीय लेख !
बदलिए समाज में फेली हुई कुरीतियों को मिटाइए
और एक स्वस्थ समाज वाले समाज की रचना कीजिये /
bahut sundar. badhai sweekaren
Normally ladies do not accept this truth.I must appreciate your courage.
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