सोमवार, 20 दिसंबर 2010

chunaavi kalaabazi

चुनाव की ऐसी है कलाबाजी 
पता नहीं कौन जीत ले कब बाज़ी 
राजनीति के अखाड़े में सभी पार्टियाँ 
जौहर दिखा रहीं थी 
हर तरह के उलटे-सीधे 
दावं-पेंच आजमा रही थी 
चुनावी भाषण में नेता 
एक दुसरे के खिलाफ बोल रहे थे 
आपस मै ही दोनों अपनी-अपनी पोले खोल रहे थे
चोर-चोर मौसेरे भाई बन रहे है 
खुले आम जनता की खाई खोद रहे है 
सबको अपनी-अपनी पड़ी हुई है 
देश की जनता बेवकूफ बनी खड़ी हुई है 
दस सालों के बाद कांग्रेस सत्ता में आई है 
पता नहीं इसमें देश की कितनी भलाई है 
दस साल के भूके पहले अपना पेट भरेंगे
उसके बाद जाकर कहीं देश की सोचेंगे 
चुनावी कलाबाजी से होता है केवल एक ही फायदा 
पुराने नेता फिर सता में आकर दुहराते है अपना वायदा
चुनावी कलाबाजी से हमेशा पार्टी तो बदलेगी
परन्तु इस देश की हालत कभी नहीं सुधरेगी
इतने सालों से जनता धोखा खा रही है 
परन्तु उसे अक्ल फिर भी नहीं आ रही है 
देश का हो रहा है सत्यानाश 
जनता झेल रही है विनाश 
ख़तम करो ये पार्टी और नेताओं का राज़ 
कुशल नेत्रत्व को सोंप दो देश का साम्राज 

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